समय Poetry (page 26)
गया था बज़्म-ए-मोहब्बत में ख़ाली जाम लिए
एहतिशाम हुसैन
हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
एहसान दानिश
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था
एहसान दानिश
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
एहसान दानिश
रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थे
एहसान दानिश
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
एहसान दानिश
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
एहसान दानिश
हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने
दिवाकर राही
खींच कर अक्स फ़साने से अलग हो जाओ
दिलावर अली आज़र
आँख में ख़्वाब ज़माने से अलग रक्खा है
दिलावर अली आज़र
वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है
दीप्ति मिश्रा
मज़दूर
दाऊद ग़ाज़ी
मशवरा
दाऊद ग़ाज़ी
ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है
दर्शन सिंह
तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन
दर्शन सिंह
रक़्स करती है फ़ज़ा वज्द में जाम आया है
दर्शन सिंह
बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर
दर्शन सिंह
मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
जग में कोई न टुक हँसा होगा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती
दानिश फ़राही
बुलंद ज़ीस्त का अपनी वक़ार हो न सका
दामोदर ठाकुर ज़की
वो जब चले तो क़यामत बपा थी चारों तरफ़
दाग़ देहलवी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
दाग़ देहलवी
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
दाग़ देहलवी
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
दाग़ देहलवी
आप का ए'तिबार कौन करे
दाग़ देहलवी
किसी ने बा-वफ़ा समझा किसी ने बेवफ़ा समझा
डी. राज कँवल
फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया
चरख़ चिन्योटी
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