समय Poetry (page 25)
वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है
फ़ना बुलंदशहरी
उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है
फ़ना बुलंदशहरी
मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा
फ़ना बुलंदशहरी
है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है
फ़ना बुलंदशहरी
ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके
फ़ना बुलंदशहरी
बोला हैं रंग कितने ज़माने के और भी
फ़ाख़िरा बतूल
कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
बला से बर्क़ ने फूँका जो आशियाने को
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
इसी जहाज़ के सहरा में डूब जाने की
फ़ैज़ान हाशमी
हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह
फ़ैज़ुल हसन
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शाएर लोग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
एक रह-गुज़र पर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हसरत-ए-दीद में गुज़राँ हैं ज़माने कब से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मिटा के तीरगी तनवीर चाहता है दिल
फ़ैय्याज़ रश्क़
जारी तो हो सब के लिए फ़रमान-ए-मोहब्बत
फ़ैय्याज़ रश्क़
जहाँ में ख़ुद को बनाने में देर लगती है
फ़ैय्याज़ रश्क़
उन लबों की याद आई गुल के मुस्कुराने से
फ़य्याज़ अहमद
किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे
फ़ैसल अजमी
''ला'' भी है एक गुमाँ
फ़हीम शनास काज़मी
कोई सबब तो है ऐसा कि एक उम्र से हैं
एजाज़ गुल
बे-सबब जम'अ तो करता नहीं तीर ओ तरकश
एजाज़ गुल
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
एजाज़ गुल
किसे ख़याल था ऐसी भी साअ'तें होंगी
एजाज़ गुल
गली से अपनी उठाता है वो बहाने से
एजाज़ गुल
अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का
एजाज़ गुल
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