समय Poetry (page 18)
सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम का
फ़रियाद आज़र
वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ
फ़रताश सय्यद
वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मेरे साथ
फ़रताश सय्यद
हम तो बस
फर्रुख यार
वो ख़ाली हाथ सफ़र-ए-आब पर रवाना हुआ
फ़र्रुख़ जाफ़री
मैं तो लम्हात की साज़िश का निशाना ठहरा
फ़ारूक़ शमीम
जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ
फ़ारूक़ बख़्शी
जन्म जन्म की कहानी
फ़रखंदा नसरीन हयात
क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
फ़ारिग़ बुख़ारी
कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है
फ़ारिग़ बुख़ारी
कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते
फ़ारिग़ बुख़ारी
ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा
फ़ारिग़ बुख़ारी
तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम
फ़रहत एहसास
फिर वही मौसम-ए-जुदाई है
फ़रहत एहसास
कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है
फ़रहत एहसास
कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए
फ़रहत एहसास
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
फ़रहत एहसास
दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा
फ़रहत एहसास
कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
फ़रहत अब्बास शाह
उसी तरफ़ है ज़माना भी आज महव-ए-सफ़र
फ़राग़ रोहवी
नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था
फ़राग़ रोहवी
लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं
फ़राग़ रोहवी
कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए
फ़राग़ रोहवी
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
फ़ानी बदायुनी
यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था
फ़ानी बदायुनी
वाहिमे की ये मश्क़-ए-पैहम क्या
फ़ानी बदायुनी
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
फ़ानी बदायुनी
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
फ़ानी बदायुनी
जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था
फ़ानी बदायुनी
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