घाव Poetry (page 4)
न आँखें ही झपकता है न कोई बात करता है
वज़ीर आग़ा
बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ
वज़ीर आग़ा
अदना सा बासी
वसीम बरेलवी
मिरे वजूद को पामाल करना चाहता है
वक़ार मानवी
गई है शाम अभी ज़ख़्म ज़ख़्म कर के मुझे
वक़ार मानवी
साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं
वामिक़ जौनपुरी
मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है
वलीउल्लाह मुहिब
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
वलीउल्लाह मुहिब
सिया है ज़ख़्म-ए-बुलबुल गुल ने ख़ार और बोईगुलशन से
वली उज़लत
वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता
वली उज़लत
नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
वली उज़लत
है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़
वली उज़लत
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
वली उज़लत
बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के
वली उज़लत
सफ़र है ख़त्म मगर बे-घरी न जाएगी
वली आलम शाहीन
फ़ज़ा में दाएरे बिखरे हुए हैं
वजद चुगताई
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
वाहिद प्रेमी
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
वाहिद प्रेमी
सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें
वहीदा नसीम
पत्थरों का मुग़न्नी
वहीद अख़्तर
रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी
वहीद अख़्तर
ख़ौफ़ नामा
वहीद अहमद
इलाज बिल-मिस्ल
वहीद अहमद
उस गली तक सड़क रही होगी
विजय शर्मा अर्श
मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे
विजय शर्मा अर्श
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
उनवान चिश्ती
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