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Collection: घाव Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 34 - Darsaal

घाव Poetry (page 34)

फ़सील-ए-जिस्म पे शब-ख़ूँ शरारतें तेरी

अंजुम इरफ़ानी

मेरी दुनिया में अभी रक़्स-ए-शरर होता है

अंजुम आज़मी

बनाए सब ने इसी ख़ाक से दिए अपने

अंजुम अंसारी

भर नहीं पाया अभी तक ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए

अनीस अंसारी

मोहिब्बान-ए-वतन का नारा

आनंद नारायण मुल्ला

मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ

अम्मार इक़बाल

अक्स कितने उतर गए मुझ में

अम्मार इक़बाल

तबस्सुम

अमजद नजमी

आशोब-ए-आगही

अमजद इस्लाम अमजद

ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते

अमजद इस्लाम अमजद

तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो

अमजद इस्लाम अमजद

पसपा हुई सिपाह तो परचम भी हम ही थे

अमजद इस्लाम अमजद

लहू में रंग लहराने लगे हैं

अमजद इस्लाम अमजद

कमाल-ए-हुस्न है हुस्न-ए-कमाल से बाहर

अमजद इस्लाम अमजद

हुज़ूर-ए-यार में हर्फ़ इल्तिजा के रक्खे थे

अमजद इस्लाम अमजद

दश्त-ए-दिल में सराब ताज़ा हैं

अमजद इस्लाम अमजद

ये लगता है अब भी कहीं कुछ बचा है

अमित शर्मा मीत

माज़ी के जब ज़ख़्म उभरने लगते हैं

अमित शर्मा मीत

शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए

अमीरुल्लाह तस्लीम

गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते

अमीरुल्लाह तस्लीम

चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा

अमीरुल्लाह तस्लीम

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है

आमिर उस्मानी

दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए

आमिर उस्मानी

एक इक तार-ए-नफ़स आशुफ़्ता-ए-आहंग था

आमिर नज़र

नदी के पार उजाला दिखाई देता है

अमीर क़ज़लबाश

कहीं सलीब कहीं कर्बला नज़र आए

अमीर क़ज़लबाश

हर एक हाथ में पत्थर दिखाई देता है

अमीर क़ज़लबाश

जरस-ए-मय ने पुकारा है उठो और सुनो

अमीन राहत चुग़ताई

जहाँ में हर बशर मजबूर हो ऐसा नहीं होता

अम्बर खरबंदा

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