घाव Poetry (page 32)
दयार-ए-हिज्र में ख़ुद को तो अक्सर भूल जाता हूँ
असलम कोलसरी
सुबुक सा दर्द था उठता रहा जो ज़ख़्मों से
असलम हबीब
कोशिश है गर उस की कि परेशान करेगा
असलम इमादी
वक़्त का कुछ रुका सा धारा है
असलम आज़ाद
वो नख़्ल जो बार-वर हुए हैं
असलम अंसारी
माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते
आसिम वास्ती
मिलने को तुझ से दिल तो मिरा बे-क़रार है
आसिफ़ुद्दौला
तेरी यादों ने तड़पाया बहुत है
अासिफ़ा ज़मानी
ये भी करना पड़ा मोहब्बत में
अासिफ़ शफ़ी
ग़ज़ल में दर्द का जादू मुझी को होना था
अासिफ़ साक़िब
तिरे बदन के नए ज़ाविए बनाता हुआ
अशरफ़ सलीम
ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
इस को ग़ुरूर-ए-इश्क़ ने क्या क्या बना दिया
अशोक साहनी
ज़रा ज़रा ही सही आश्ना तो मैं भी हूँ
अशफ़ाक़ हुसैन
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
अशफ़ाक़ हुसैन
ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है
अशफ़ाक़ आमिर
लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं
अशफ़ाक़ आमिर
एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया
अशफ़ाक़ आमिर
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
अशअर नजमी
इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं
अशअर नजमी
अभी कुछ दिन लगेंगे
असग़र नदीम सय्यद
जला जला के दिए पास पास रखते हैं
असग़र मेहदी होश
ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा
असद जाफ़री
मिरे शजर तुझे मौसम नया बनाते रहें
असअ'द बदायुनी
यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
आरज़ू लखनवी
तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर
आरज़ू लखनवी
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
आरज़ू लखनवी
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से
आरज़ू लखनवी
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
आरज़ू लखनवी
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