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Collection: घाव Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 28 - Darsaal

घाव Poetry (page 28)

कुछ यूँ सफ़र के शौक़ ने मंज़र दिखाए हैं

देवमणि पांडेय

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

तिरे बग़ैर

दर्शिका वसानी

मोहब्बत की मता-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

दर्शन सिंह

जग में कोई न टुक हँसा होगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

कुछ अपने दौर की भी कहानी लिखा करो

दानिश फ़राही

बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवा

दाग़ देहलवी

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

उस के दर तक किसे रसाई है

दाग़ देहलवी

सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

फ़ज़ा-ए-आदमियत को सँवरने ही नहीं देते

चरण सिंह बशर

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

जले चराग़ बुझाने की ज़िद नहीं करते

चाँदनी पांडे

जो न कट सका वो निशान था किसी ज़ख़्म का

बुशरा हाश्मी

सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था

बुशरा हाश्मी

ख़ुद को तमाशा ख़ूब बनाता रहा हूँ मैं

बबल्स होरा सबा

क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है

बिशन नरायण दराबर

वो: एक

बिमल कृष्ण अश्क

जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे

बिमल कृष्ण अश्क

दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

बदन पे ज़ख़्म सजाए लहू लबादा किया

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

समुंदरों को भी दरिया समझ रहे हैं हम

भारत भूषण पन्त

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

भारत भूषण पन्त

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

भारत भूषण पन्त

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

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