घाव Poetry (page 26)
नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा
फ़ारूक़ मुज़्तर
ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया
फ़ारूक़ अंजुम
शहर की फ़सीलों पर ज़ख़्म जगमगाएँगे
फ़ारूक़ अंजुम
परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं
फ़ारूक़ अंजुम
जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है
फ़ारूक़ अंजुम
यादों का अजीब सिलसिला है
फ़ारिग़ बुख़ारी
कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है
फ़ारिग़ बुख़ारी
इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए
फ़ारिग़ बुख़ारी
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
फ़ारिग़ बुख़ारी
जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो
फ़रहत शहज़ाद
ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया
फ़रहत नदीम हुमायूँ
मोहब्बत का ये रुख़ देखा नहीं था
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ज़ख़्म
फ़रहत एहसास
सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं
फ़रहत एहसास
पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है
फ़रहत एहसास
मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे
फ़रहत एहसास
मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता
फ़रहत एहसास
हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है
फ़रहत एहसास
एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं
फ़रहत एहसास
दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा
फ़रहत एहसास
बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है
फ़रहत एहसास
जल्वा है वो कि ताब-ए-नज़र तक नहीं रही
फ़रहत अब्बास
जिस्म में गूँजता है रूह पे लिक्खा दुख है
फ़क़ीह हैदर
वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया
फ़ानी बदायुनी
वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला
फ़ानी बदायुनी
मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं
फ़ानी बदायुनी
ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें
फ़ानी बदायुनी
आह से या आह की तासीर से
फ़ानी बदायुनी
अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता
फ़ना बुलंदशहरी
रेशम ज़ुल्फ़ के तार भी बातें करते हैं
फख़्र अब्बास
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