घाव Poetry (page 16)
अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले
सादिक़ नसीम
एक इक लम्हा मुझे ज़ीस्त से बे-ज़ारी है
सादिक़ इंदौरी
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
सदा अम्बालवी
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
सदा अम्बालवी
अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम
सचिन शालिनी
ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है कोशिश करो हरा ही रहे
साबिर ज़फ़र
हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया
साबिर ज़फ़र
तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
साबिर वसीम
गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ
साबिर वसीम
हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं
साबिर रज़ा
तेरी याद मेरी भूल
साबिर दत्त
मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं
साबिर
किस को बताते किस से छुपाते सुराग़-ए-दिल
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
एक मशवरा
सबा इकराम
उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ
सबा अकबराबादी
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
सबा अकबराबादी
जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं
सबा अकबराबादी
हक़-ओ-नाहक़ जलाना हो किसी को तो जला देना
साइल देहलवी
हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले
साइल देहलवी
बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में
साइल देहलवी
मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ
रूही कंजाही
गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बे-ख़बर न था
रोहित सोनी ‘ताबिश’
ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
रियाज़ ख़ैराबादी
ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं
रियाज़ ख़ैराबादी
पाया जो तुझे तो खो गए हम
रियाज़ ख़ैराबादी
ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत
रियाज़ ख़ैराबादी
जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश
रियाज़ ख़ैराबादी
दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा
रियाज़ ख़ैराबादी
तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे
रिन्द लखनवी
ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए
रिन्द लखनवी
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