घाव Poetry (page 13)
हर एक ख़्वाब सो गया ख़याल जागते रहे
सरवत ज़ेहरा
ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
सरवत हुसैन
कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
सरवत हुसैन
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
सरवत हुसैन
इस से पहले कि सर उतर जाएँ
सरफ़राज़ दानिश
दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है
सरदार सोज़
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
सदार आसिफ़
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
सदार आसिफ़
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
सदार आसिफ़
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
सदार आसिफ़
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
साक़िब लखनवी
असीर-ए-इश्क़-ए-मरज़ हैं तो क्या दवा करते
साक़िब लखनवी
सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर
साक़ी फ़ारुक़ी
मुर्दा-ख़ाना
साक़ी फ़ारुक़ी
मैं और मैं!
साक़ी फ़ारुक़ी
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
साक़ी फ़ारुक़ी
कब इस से क़ब्ल नज़र में गुल-ए-मलाल खिला
समीना राजा
वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में
समद अंसारी
दिल को उजड़े हुए बीते हैं ज़माने कितने
सलमान अंसारी
जब आसमान ज़मीं पर उतरने लगता है
सलीम शुजाअ अंसारी
पस-ए-निगाह कोई लौ भड़कती रहती है
सालिम सलीम
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न और भी होता है वसीअ
सलीम सिद्दीक़ी
ख़्वाहिश-ए-तख़्त न अब दिरहम-ओ-दीनार की गूँज
सलीम सिद्दीक़ी
ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं
सलीम सिद्दीक़ी
हर बज़्म क्यूँ नुमाइश-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर बने
सलीम शाहिद
ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर
सलीम शाहिद
सुब्ह-ए-सफ़र का राज़ किसी पर यहाँ न खोल
सलीम शाहिद
मुर्दा रगों में ख़ून की गर्मी कहाँ से आई
सलीम शाहिद
मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर
सलीम शाहिद
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