घाव Poetry (page 10)
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
शकेब जलाली
इंदिमाल
शकेब जलाली
ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है
शकेब जलाली
शफ़क़ जो रू-ए-सहर पर गुलाल मलने लगी
शकेब जलाली
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
शकेब जलाली
कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के
शकेब जलाली
हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर
शकेब जलाली
दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है
शकेब जलाली
न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे
शकेब बनारसी
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं
शहज़ाद क़मर
मिरे रोग का न मलाल कर मिरे चारा-गर
शहज़ाद नय्यर
सोता जागता साया
शहज़ाद अहमद
वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को
शहज़ाद अहमद
सब्त है चेहरों पे चुप बन में अंधेरा हो चुका
शहज़ाद अहमद
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
शहज़ाद अहमद
न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ
शहज़ाद अहमद
बिखरे हुए तारों से मिरी रात भरी है
शहज़ाद अहमद
एतराफ़
शहरयार
चुपके से इधर आ जाओ
शहरयार
हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई
शहरयार
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
शहरयार
नदी थी कश्तियाँ थीं चाँदनी थी झरना था
शहराम सर्मदी
ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए
शहनाज़ नूर
ग़म मुझ से किसी तौर समेटा नहीं जाता
शहनाज़ मुज़म्मिल
उसे जब भी देखा बहुत ध्यान से
शाहिदा तबस्सुम
संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है
शाहिदा तबस्सुम
इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई
शाहिदा तबस्सुम
सीने की मिसाल आग है चाँदी सा धुआँ है
शाहिद शैदाई
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