यार Poetry (page 24)
सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
रिन्द लखनवी
नीस्त बे-यार मुझ को हस्ती है
रिन्द लखनवी
नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़
रिन्द लखनवी
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
रिन्द लखनवी
हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
रिन्द लखनवी
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
रिन्द लखनवी
इक परी का फिर मुझे शैदा किया
रिन्द लखनवी
चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है
रिन्द लखनवी
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
रिन्द लखनवी
ये जो मुझ पर निखार है साईं
रहमान फ़ारिस
विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में
रहमान फ़ारिस
सुकूत-ए-शाम में गूँजी सदा उदासी की
रहमान फ़ारिस
सर-ब-सर यार की मर्ज़ी पे फ़िदा हो जाना
रहमान फ़ारिस
रात आ बैठी है पहलू में सितारो तख़लिया
रहमान फ़ारिस
नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है
रहमान फ़ारिस
मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं
रहमान फ़ारिस
दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ
रज़िया हलीम जंग
ये ज़ुल्फ़-ए-यार भी क्या बिजलियों का झुरमुट है
रज़ी रज़ीउद्दीन
शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल
रज़ी रज़ीउद्दीन
काश पड़ते न इन अज़ाबों में
रज़ी रज़ीउद्दीन
दहका पड़ा है जामा-ए-गुल यार ख़ैर हो
रज़ी रज़ीउद्दीन
ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे
रज़ी मुजतबा
वो शाख़-ए-गुल कि जो आवाज़-ए-अंदलीब भी थी
राज़ी अख्तर शौक़
दिन का मलाल शाम की वहशत कहाँ से लाएँ
राज़ी अख्तर शौक़
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
रज़ा अज़ीमाबादी
शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का
रज़ा अज़ीमाबादी
लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू
रज़ा अज़ीमाबादी
क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज
रज़ा अज़ीमाबादी
इश्क़ के जाँ-निसार जीते हैं
रज़ा अज़ीमाबादी
हम मर गए प शिकवे की मुँह पर न आई बात
रज़ा अज़ीमाबादी
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