यार Poetry (page 23)
ग़म रात-दिन रहे तो ख़ुशी भी कभी रही
सईद अख़्तर
फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले
सादिक़
क़िस्मत में अगर जुदाइयाँ हैं
साबिर ज़फ़र
राह में शहर-ए-तरब याद आया
साबिर वसीम
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
साबिर
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
साबिर
मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं
साबिर
नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है
सबा नक़वी
किसी भी वहम को ख़ुद पर सवार मत करना
सादुल्लाह शाह
ये मत भुला कि यहाँ जिस क़दर उजाले हैं
सअादत बाँदवी
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
एस ए मेहदी
जब न तब सुनिए तो करता है वो इक़रार बग़ैर
राय सरब सुख दिवाना
इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई
रूही कंजाही
उसी हसीं से चमन में बहार आज भी है
रोहित सोनी ‘ताबिश’
गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बे-ख़बर न था
रोहित सोनी ‘ताबिश’
तुम्हारी याद तुम्हारा ख़याल काफ़ी है
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
डराता है हमें महशर से तू वाइज़ अरे जा भी
रियाज़ ख़ैराबादी
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
रियाज़ ख़ैराबादी
रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा
रियाज़ ख़ैराबादी
मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद
रियाज़ ख़ैराबादी
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
रियाज़ ख़ैराबादी
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रियाज़ ख़ैराबादी
बाला-ए-बाम ग़ैर है में आस्तान पर
रियाज़ ख़ैराबादी
उम्र में दो फ़ुट बड़े हैं दोस्तो
रियाज़ अहमद क़ादरी
ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
रिन्द लखनवी
यार आया है अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार दिखाओ
रिन्द लखनवी
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके
रिन्द लखनवी
उल्फ़त न करूँगा अब किसी की
रिन्द लखनवी
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
रिन्द लखनवी
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