यार Poetry (page 21)
मौजा-ए-रेग-ए-रवान-ए-ग़म में बह के देखना
सरदार सलीम
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
सदमा
साक़ी फ़ारुक़ी
कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम
सालिम सलीम
इतनी क़ुर्बत भी नहीं ठीक है अब यार के साथ
सलीम सिद्दीक़ी
ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं
सलीम कौसर
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
सलीम कौसर
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे
सलीम कौसर
तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई
सलीम अहमद
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
सलीम अहमद
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
सलीम अहमद
मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है
सलीम अहमद
जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए
सलीम अहमद
इन ग़ज़ालान-ए-तरह-दार को कैसे छोड़ूँ
सलाम मछली शहरी
तीस दिन यार अब न आएगा
सख़ी लख़नवी
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
सख़ी लख़नवी
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
सख़ी लख़नवी
आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
सख़ी लख़नवी
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
सख़ी लख़नवी
तुम अगर दो न पैरहन अपना
सख़ी लख़नवी
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
सख़ी लख़नवी
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
सख़ी लख़नवी
इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
सख़ी लख़नवी
हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
सख़ी लख़नवी
दिल उसे दे दिया 'सख़ी' ही तो है
सख़ी लख़नवी
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
सख़ी लख़नवी
दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए
सख़ी लख़नवी
चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़
सख़ी लख़नवी
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