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Collection: अस्तित्व Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 11 - Darsaal

अस्तित्व Poetry (page 11)

ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं

हफ़ीज़ जालंधरी

मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका

हादी मछलीशहरी

हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं

हादी मछलीशहरी

मुशीर

हबीब जालिब

उस की तामील कर रहा हूँ मैं

हबीब कैफ़ी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

इस तरह क़हत-ए-हवा की ज़द में है मेरा वजूद

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को

ग़ज़नफ़र

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का

ग़ालिब

है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर

ग़ालिब

ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

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