वहशत Poetry (page 20)
हमारे दिल का न दर खटखटा परेशानी
बिल्क़ीस ख़ान
तड़ख़न
बिलाल अहमद
ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी
बिलाल अहमद
इक दिखावा रह गया बस दिल से वो चाहत गई
बिलाल अहमद
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
भारत भूषण पन्त
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
भारत भूषण पन्त
ख़्वाहिशों से वलवलों से दूर रहना चाहिए
भारत भूषण पन्त
कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे
भारत भूषण पन्त
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
बेख़ुद देहलवी
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
बेदम शाह वारसी
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
बेदम शाह वारसी
ग़म्ज़ा पैकान हुआ जाता है
बेदम शाह वारसी
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
बेदम शाह वारसी
राज़ है इबरत-असर फ़ितरत की हर तहरीर का
बेबाक भोजपुरी
हवा-ए-वहशत दिल ले उड़ी कहाँ से कहाँ
बयान मेरठी
खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का
बयान मेरठी
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
बयान मेरठी
नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले
बासित भोपाली
मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए
बासित भोपाली
कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
जोश-ए-वहशत यही कहता है निहायत कम है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की
बाक़ी अहमदपुरी
जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
गोडो
बाक़र मेहदी
चराग़-ए-हसरत-ओ-अरमाँ बुझा के बैठे हैं
बाक़र मेहदी
गिर्या-ए-सगाँ
बलराज कोमल
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