समय Poetry (page 7)

वो मुझ को क्या बताना चाहता है

वसीम बरेलवी

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं

वसीम बरेलवी

मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है

वसीम बरेलवी

चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है

वसीम बरेलवी

इक अधूरी सी शाम बाक़ी है

वसीम अकरम

सदा-ए-आफ़रीं उट्ठी थी जस्त ऐसी थी

वक़ार वासिक़ी

वो मेरा यार है पर मेरी मानता नहीं है

वक़ार ख़ान

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

मन की मय हो तो पियाले नहीं देखे जाते

वक़ार ख़ान

चश्म-ए-यक़ीं से देखिए जल्वा-गह-ए-सिफ़ात में

वक़ार बिजनोरी

बदलती रहती हैं क़द्रें रहील-ए-वक़्त के साथ

वामिक़ जौनपुरी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

भूका बंगाल

वामिक़ जौनपुरी

इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है

वामिक़ जौनपुरी

हमारे मय-कदे का अब निज़ाम बदलेगा

वामिक़ जौनपुरी

इस ख़ानुमाँ-ख़राब को भी दे मियाँ बता

वलीउल्लाह मुहिब

तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़

वलीउल्लाह मुहिब

मा'रके में इश्क़ के सर से गुज़रने से न डर

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़

वलीउल्लाह मुहिब

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़

वली उज़लत

फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच

वली उज़लत

बिगाड़ना सँवारना है वक़्त के मिज़ाज पर

वली शम्सी

तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया

वली शम्सी

ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं

वली मोहम्मद वली

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली मोहम्मद वली

यूँ भी जीने के बहाने निकले

वली आलम शाहीन

भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है

वाली आसी

जहालत का मंज़र जो राहों में था

वकील अख़्तर

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