समय Poetry (page 62)

हवेली छोड़ने का वक़्त आ गया 'अरशद'

अरशद अब्दुल हमीद

मिले जो उस से तो यादों के पर निकल आए

अरशद अब्दुल हमीद

घटाएँ घिरती हैं बिजली कड़क के गिरती है

अरशद अब्दुल हमीद

बस एक ही कैफ़िय्यत-ए-दिल सुब्ह-ओ-मसा है

अर्श सिद्दीक़ी

नूर-अफ़शाँ है वो ज़ुल्मत में उजालों की तरह

अर्श सहबाई

जश्न-ए-आज़ादी

अर्श मलसियानी

तू अगर दिल में एक बार आए

अर्श मलसियानी

निगाह-ए-तिश्ना से हैरत का बाब देखते हैं

अरमान नज्मी

गिरते उभरते डूबते धारे से कट गया

अरमान नज्मी

हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

वो क्या मस्लहत थी

आरिफ़ा शहज़ाद

दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब

आरिफ़ शफ़ीक़

तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,

आरिफ़ इशतियाक़

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

आरिफ़ इमाम

दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया

आरिफ़ अंसारी

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

आरिफ़ अब्दुल मतीन

छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले

आरिफ़ अब्दुल मतीन

बजा कि कश्ती है पारा पारा थपेड़े तूफ़ाँ के खा रहा हूँ

आरिफ़ अब्दुल मतीन

किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है

आराधना प्रसाद

तय न कर पाई मंज़िलें तितली

अक़ील जामिद

मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ

अनवर शऊर

टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं

अनवर शऊर

'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती

अनवर शऊर

न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं

अनवर शऊर

मुझे ये जुस्तुजू क्यूँ हो कि क्या हूँ और किया था मैं

अनवर शऊर

जो सुनता हूँ कहूँगा मैं जो कहता हूँ सुनूँगा मैं

अनवर शऊर

जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं

अनवर शऊर

और न दर-ब-दर फिरा और न आज़मा मुझे

अनवर शऊर

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