समय Poetry (page 61)

जब हम दोनों जुदा हुए थे

असग़र नदीम सय्यद

छुट्टी का दिन

असग़र नदीम सय्यद

अपनी रात लय जाओ

असग़र नदीम सय्यद

इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को

असग़र मेहदी होश

कुछ भी कहो सब अपनी अनाओं पे अड़े हैं

असग़र आबिद

बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया

असीर लखनवी

तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं

असर लखनवी

इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है

असद मुल्तानी

नौ मंज़िला बिल्डिंग

असद मोहम्मद ख़ाँ

जो बज़्म-ए-दहर में कल तक थे ख़ुद-सरों की तरह

असद जाफ़री

जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई

असद भोपाली

यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है

असअ'द बदायुनी

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं

असअ'द बदायुनी

मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में

असअ'द बदायुनी

शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है

आरज़ू लखनवी

तड़पते दिल को न ले इज़्तिराब लेता जा

आरज़ू लखनवी

आराम के थे साथी क्या क्या जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं

आरज़ू लखनवी

सच की ख़ातिर सब कुछ खोया कौन लिखेगा

अरशद कमाल

कुछ तो मिल जाए कहीं दीदा-ए-पुर-नम के सिवा

अरशद कमाल

फ़िक्र सोई है सर-ए-शाम जगा दी जाए

अरशद कमाल

किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे

अरशद जमाल 'सारिम'

बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं

अरशद जमाल 'सारिम'

बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा

अरशद अली ख़ान क़लक़

वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की

अरशद अली ख़ान क़लक़

वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप

अरशद अली ख़ान क़लक़

था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ

अरशद अली ख़ान क़लक़

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में

अरशद अली ख़ान क़लक़

दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ

अरशद अली ख़ान क़लक़

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

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