समय Poetry (page 59)

पत्तों को छोड़ देता है अक्सर ख़िज़ाँ के वक़्त

अतुल अजनबी

वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में

अतीक़ुल्लाह

मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी

अतीक़ुल्लाह

ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए

अतीक़ुल्लाह

इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था

अतीक़ुल्लाह

वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी

आतिफ़ ख़ान

दे के ख़ुद ख़ून का मंज़र मुझ को

आतिफ़ ख़ान

मैं तुझे भूलना चाहूँ भी तो ना-मुम्किन है

अतहर नासिक

चुप-चाप हब्स-ए-वक़्त के पिंजरे में मर गया

अतहर नासिक

सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं

अतहर नफ़ीस

क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर

अतहर नफ़ीस

क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ

अतहर नफ़ीस

दिल की मसर्रतें नई जाँ का मलाल है नया

अतहर नफ़ीस

करता मैं अब किसी से कोई इल्तिमास क्या

अतहर नादिर

क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख

अतीक़ असर

बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना

अतीक़ अंज़र

उदास बैठा दिए ज़ख़्म के जलाए हुए

अतीक़ अंज़र

मिरे दिल में ख़ुश्बू बसी थी जो वो मकान अपना बदल गई

अतीक़ अंज़र

जिस की ख़ातिर मैं ने दुनिया की तरफ़ देखा न था

अतीक़ अंज़र

गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था

अतीक़ अंज़र

वो गर्द है कि वक़्त से ओझल तो मैं भी हूँ

अताउल हक़ क़ासमी

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

चोब-ए-सहरा भी वहाँ रश्क-ए-समर कहलाए

अता शाद

आज भी 'प्रेम' के और 'कृष्ण' के अफ़्साने हैं

अता आबिदी

पर्दा और इस्मत

असरार-उल-हक़ मजाज़

पहला जश्न-ए-आज़ादी

असरार-उल-हक़ मजाज़

नूरा

असरार-उल-हक़ मजाज़

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिल्ली से वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

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