समय Poetry (page 58)

वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था

अज़हर इनायती

तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं

अज़हर इनायती

नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है

अज़हर इनायती

कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं

अज़हर इनायती

एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं

अज़हर फ़राग़

अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है

अज़हर फ़राग़

उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं

अज़हर फ़राग़

कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है

अज़हर फ़राग़

हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है

अज़हर फ़राग़

धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं

अज़हर फ़राग़

क़दम क़दम निशान ढूँढता रहा

अज़हर अब्बास

इधर महसूस होती है कमी उस की

अज़हर अब्बास

हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई

अज़हर अब्बास

ये और बात है कि मदावा-ए-ग़म न था

अज़ीम मुर्तज़ा

जब से है वो रौनक़-ए-महफ़िल आँखों में

अज़ीम मुर्तज़ा

इस से पहले कि घर के पर्दों से

आज़र अस्करी

शबाब आया तड़पने और तड़पाने का वक़्त आया

अाज़म जलालाबादी

वो वक़्त आएगा जब ख़ुद तुम्ही ये सोचोगी

आज़ाद गुलाटी

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

आज़ाद गुलाटी

हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था

आज़ाद गुलाटी

अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया

आज़ाद गुलाटी

सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया

अय्यूब ख़ावर

चराग़-ए-क़ुर्ब की लौ से पिघल गया वो भी

अय्यूब ख़ावर

उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की

औरंगज़ेब

अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया

औरंगज़ेब

आज शब-ए-मेराज होगी इस लिए तज़ईन है

औरंगज़ेब

शिकस्ता-दिल की ख़ुशी दोस्तो ख़ुशी तो न थी

औलाद अली रिज़वी

नाव तूफ़ान में जब ज़ेर-ओ-ज़बर होती है

औलाद अली रिज़वी

जहाँ निफ़ाक़ के शो'ले मिलें बुझा के चलो

औलाद अली रिज़वी

घुटी घुटी सी फ़ज़ा में शगुफ़्तगी तो मिली

औलाद अली रिज़वी

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