समय Poetry (page 57)

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं

अज़ीज़ लखनवी

हिज्र की रात याद आती है

अज़ीज़ लखनवी

एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं

अज़ीज़ लखनवी

दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ

अज़ीज़ लखनवी

देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना

अज़ीज़ लखनवी

न बदलना था न बदला दिल-ए-शैदा अपना

अज़ीज़ हैदराबादी

क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं

अज़ीज़ हैदराबादी

ख़लल-पज़ीर हुआ रब्त-ए-मेहर-ओ-माह में वक़्त

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात

अज़ीज़ हामिद मदनी

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

अज़ीज़ हामिद मदनी

जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो

अज़ीज़ हामिद मदनी

जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

कौन वाँ जुब्बा-ओ-दस्तार में आ सकता है

अज़ीम हैदर सय्यद

ज़ीस्त उनवान तेरे होने का

अज़हर नवाज़

मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए

अज़हर नवाज़

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

ब-वक़्त-ए-शाम समुंदर में गिर गया सूरज

अज़हर नैयर

मैं अपने शहर में अपना ही चेहरा खो बैठा

अज़हर नैयर

हमारे चेहरे पे रंज-ओ-मलाल ऐसा था

अज़हर नैयर

ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा

अज़हर लखनवी

पलट चलें कि ग़लत आ गए हमीं शायद

अज़हर इनायती

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना

अज़हर इनायती

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