समय Poetry (page 55)

वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा

बशीर बद्र

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे

बशीर बद्र

सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे

बशीर बद्र

नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह

बशीर बद्र

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

बशीर बद्र

ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम

बशीर मुंज़िर

दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी

बशीर मुंज़िर

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

बशर नवाज़

बाज़ार-ए-ज़िंदगी में जमे कैसे अपना रंग

बशर नवाज़

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो

बाक़ी सिद्दीक़ी

दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे

बाक़ी सिद्दीक़ी

रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की

बाक़ी अहमदपुरी

यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सुबुक-सरी में भी अंदेशा-ए-हवा रखना

बाक़र नक़वी

टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म

बाक़र मेहदी

गूँजता शहरों में तन्हाई का सन्नाटा तो है

बाक़र मेहदी

कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना

बख़्श लाइलपूरी

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

ज़फ़र

न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है

ज़फ़र

है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की

ज़फ़र

गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है

ज़फ़र

गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का

बद्र-ए-आलम ख़लिश

चुप थे जो बुत सवाल ब-लब बोलने लगे

बद्र-ए-आलम ख़लिश

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