समय Poetry (page 54)

जाम-ए-गदाई हाथ में ले नित सांज-सवेरे फिरते हैं

भूरे ख़ान आशुफ़्ता

रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर

भारत भूषण पन्त

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है

भारत भूषण पन्त

शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम

बेख़ुद देहलवी

नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

ऐ दिल की ख़लिश गर यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में

बहज़ाद लखनवी

तुम याद मुझे आ जाते हो

बहज़ाद लखनवी

यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए

बहज़ाद लखनवी

तुझ पर मिरी मोहब्बत क़ुर्बान हो न जाए

बहज़ाद लखनवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रक्खा

बेगम लखनवी

तरहदार कहाँ से लाऊँ

बेबाक भोजपुरी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

जिगर-गुदाज़ मआ'नी समझ सको तो कहूँ

बेबाक भोजपुरी

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते

बासिर सुल्तान काज़मी

ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

ऐसा लगता है मुख़ालिफ़ है ख़ुदाई मेरी

बशीर सैफ़ी

न आने के उन के बहाने भी देखे

बशीर महताब

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

मिरे बदन में छुपी आग को हवा देगा

बशीर फ़ारूक़ी

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