समय Poetry (page 53)

काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है

दाग़ देहलवी

इधर देख लेना उधर देख लेना

दाग़ देहलवी

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम

दाग़ देहलवी

देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई

दाग़ देहलवी

डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

काएनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे

चित्रांश खरे

हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने

चरख़ चिन्योटी

हम जो मिल बैठें तो यक-जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

हम जो मिल बैठें तो यक जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया

चरख़ चिन्योटी

लौट चलिए

चन्द्रभान ख़याल

कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम

चंद्र प्रकाश शाद

बदन को अपनी बिसात तक तो पसारना था

चंद्र प्रकाश शाद

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

ब-ज़ाहिर तुझ से मिलने का कोई इम्काँ नहीं है

बुशरा फर्रुख

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

आठ पहर है ये ही ग़म

बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद

बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर

बिस्मिल सईदी

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

बिस्मिल साबरी

अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर

बिस्मिल अज़ीमाबादी

जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था

बिमल कृष्ण अश्क

मुसाफ़िरों का यहाँ से गुज़र नहीं है क्या

बिल्क़ीस ख़ान

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