समय Poetry (page 47)

उजड़े नगर में शाम कभी कर लिया करें

फ़ारूक़ शफ़क़

कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला

फ़ारूक़ शफ़क़

होने वाला था इक हादसा रह गया

फ़ारूक़ शफ़क़

तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का

फ़ारूक़ नाज़की

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

बचपन

फ़ारूक़ नाज़की

शिकायत

फ़ारूक़ बख़्शी

वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

फ़ारूक़ अंजुम

यारों को क्या ढूँड रहे हो वक़्त की आँख-मिचोली में

फ़ारूक़ अंजुम

हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं

फरीहा नक़वी

याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए

फ़ारिग़ बुख़ारी

मसीह-ए-वक़्त सही हम को उस से क्या लेना

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से

फ़रहत शहज़ाद

आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के

फ़रहत शहज़ाद

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

जब हर नज़र हो ख़ुद ही तजल्ली-नुमा-ए-ग़म

फ़रहत क़ादरी

आई ख़िज़ाँ चमन में गए दिन बहार के

फ़रहत क़ादरी

ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मैं जब कभी उस से पूछता हूँ कि यार मरहम कहाँ है मेरा

फ़रहत एहसास

सहरा के संगीन सफ़र में आब-रसानी कम न पड़े

फ़रहत एहसास

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

फ़रहत एहसास

ख़ुदा ख़ामोश बंदे बोलते हैं

फ़रहत एहसास

हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है

फ़रहत एहसास

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