समय Poetry (page 44)

सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा

गोविन्द गुलशन

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए

गोपालदास नीरज

शादाँ न हो गर मुझ पे कड़ा वक़्त पड़ा है

गोपाल मित्तल

किसी से ख़्वाब का चर्चा न करना

गिरिजा व्यास

रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बर्क़ का ठीक अगर निशाना हो

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

जिस क़दर महमेज़ करता हूँ मैं 'साजिद' वक़्त को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

लहू की आग अगर जलती रहेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अभी शब है मय-ए-उल्फ़त उण्डेलें

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइने में अक्स खिलता है गुल-ए-हैरत नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अभी आइना मुज़्महिल है

ग़ुफ़रान अमजद

कोई दो-चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

कोई दो चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

जाते हैं वहाँ से गर कहीं हम

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया

ग़ज़नफ़र

तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी

ग़ज़नफ़र

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग

ग़मगीन देहलवी

जो न वहम-ओ-गुमान में आवे

ग़मगीन देहलवी

सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी

ग़ालिब

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