समय Poetry (page 32)

आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया

रशीद शाहजहाँपुरी

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

राशिद मुफ़्ती

लाख मुझे दोश पे सर चाहिए

राशिद मुफ़्ती

मौसम के मुताबिक़ कोई सामाँ भी नहीं है

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

उर्दू

राशिद बनारसी

रेत क़ाबिज़ थी बहुत ख़ामोश लगती थी नदी

राशिद अनवर राशिद

नज़र से दूर रहे मुझ को आज़माए भी

राशिद अनवर राशिद

सफ़र

राशिद आज़र

हुदूद का दाएरा

राशिद आज़र

आबला

राशिद आज़र

चाहत तुम्हारी सीने पे क्या गुल कतर गई

राशिद आज़र

तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ

रशीदुज़्ज़फ़र

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

इन हसीनों की मोहब्बत का भरोसा क्या है

रशीद रामपुरी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

रशीद क़ैसरानी

है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो

रशीद क़ैसरानी

सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी

रशीद निसार

मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया

रशीद निसार

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही

रशीद लखनवी

जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए

रशीद लखनवी

हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते

रशीद लखनवी

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