समय Poetry (page 31)

बिछड़ते वक़्त की उस एक बद-गुमानी में

रेनू नय्यर

विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में

रहमान फ़ारिस

उम्र-भर इश्क़ किसी तौर न कम हो आमीन

रहमान फ़ारिस

मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ

रहमान फ़ारिस

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

कौन कहाँ तक जा सकता है

रेहाना रूही

जुनून-ए-इश्क़ में सद-चाक होना पड़ता है

रेहाना रूही

हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

रज़िया फ़सीह अहमद

था मिरी जस्त पे दरिया बड़ी हैरानी में

राज़ी अख्तर शौक़

हलाक-ए-कश्मकश-ए-राएगाँ बहुत से हैं

राज़ी अख्तर शौक़

छेड़ के साज़-ए-ज़रगरी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है रक़्स में

राज़ी अख्तर शौक़

बिछड़ते वक़्त तो कुछ उस में ग़म-गुसारी थी

राज़ी अख्तर शौक़

यूँही ज़ालिम का रहा राज अगर अब के बरस

रज़ा मौरान्वी

ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है

रज़ा मौरान्वी

लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू

रज़ा अज़ीमाबादी

हम मर गए प शिकवे की मुँह पर न आई बात

रज़ा अज़ीमाबादी

सवाद-ए-शहर में थोड़ी सी ये जो जन्नत है

रज़ा अश्क

दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले

रज़ा अमरोही

अफ़्लाक गूँगे हैं

रविश नदीम

धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे

रवी कुमार

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

ब-नाम-ए-पैकर-ख़ाकी न गर्द बन जाओ

रौनक़ दकनी

क़ातिल सभी थे चल दिए मक़्तल से रातों रात

रउफ़ ख़लिश

लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ

रतन पंडोरवी

सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया

रसूल साक़ी

शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है

रसूल साक़ी

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

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