समय Poetry (page 30)

दिल जो घबराया तो उठ कर दोस्तों में आ गया

रियाज़ साग़र

माज़रत

रियाज़ लतीफ़

बनारस

रियाज़ लतीफ़

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

सुब्ह है रात कहाँ अब वो कहाँ रात की बात

रियाज़ ख़ैराबादी

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़

रियाज़ ख़ैराबादी

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़

रियाज़ ख़ैराबादी

किसी से वस्ल में सुनते ही जान सूख गई

रियाज़ ख़ैराबादी

दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

रिन्द लखनवी

यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में

रिफ़अत सेठी

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

रियाज़ मजीद

उस ने इक दिन भी न पूछा बोल आख़िर किस लिए

रियाज़ मजीद

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

मासूम ख़्वाहिशों की पशीमानियों में था

रियाज़ मजीद

किसी भी तौर तबीअ'त कहाँ सँभलने की

रियाज़ मजीद

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

कौन से जज़्बात ले कर तेरे पास आया करूँ

रियाज़ मजीद

जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा

रियाज़ मजीद

हो गया है एक इक पल काटना भारी मुझे

रियाज़ मजीद

चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें

रेनू नय्यर

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