समय Poetry (page 26)
मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो
सलीम शाहिद
अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई
सलीम शाहिद
अब शहर की और दश्त की है एक कहानी
सलीम शाहिद
वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
सलीम कौसर
वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की
सलीम कौसर
तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता
सलीम कौसर
तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते
सलीम कौसर
मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते
सलीम कौसर
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे
सलीम कौसर
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
सलीम कौसर
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती
सलीम कौसर
दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
सलीम कौसर
बस लौट आना
सलीम फ़िगार
सहमे नहीफ़ दरिया के धारे की बात कर
सलीम फ़िगार
ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए
सलीम फ़िगार
ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए
सलीम फ़िगार
चमकती ओस की सूरत गुलों की आरज़ू होना
सलीम फ़िगार
कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं
सलीम फ़राज़
मेरा दुश्मन
सलीम अहमद
तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई
सलीम अहमद
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
सलीम अहमद
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
सलाम संदेलवी
ये धरती ख़ूब-सूरत है
सलाम मछली शहरी
अवाम
सलाम मछली शहरी
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
सख़ी लख़नवी
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
सख़ी लख़नवी
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
सख़ी लख़नवी
सुब्ह
सज्जाद बाक़र रिज़वी
क्या इश्क़ का लें नाम हवस आम नहीं है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही
सज्जाद बाक़र रिज़वी
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