समय Poetry (page 25)
आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
मेरा शुमार कर ले अदद के बग़ैर भी
सरदार अयाग़
सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है
सदार आसिफ़
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
सदार आसिफ़
शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे
सारा शगुफ़्ता
परिंदा कमरे में रह गया
सारा शगुफ़्ता
आँखें दो जुडवाँ बहनें
सारा शगुफ़्ता
आधा कमरा
सारा शगुफ़्ता
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
साक़िब लखनवी
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
साक़िब लखनवी
मैं और मैं!
साक़ी फ़ारुक़ी
छुप के मिलने आ जाए रौशनी की जुरअत क्या
साक़ी फ़ारुक़ी
वो मेरे हाल-ए-दिल से इस क़दर भी बे-ख़बर होगा
संदीप कोल नादिम
ये रस्ता
समीना राजा
हम रूह-ए-काएनात हैं नक़्श-ए-असास हैं
समद अंसारी
हक़-नवाई को ज़माने की ज़बाँ कौन करे
समद अंसारी
ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए
सलीम शुजाअ अंसारी
कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया
सलीम शुजाअ अंसारी
धड़कनें बन के जो सीने में रहा करता था
सलीम शुजाअ अंसारी
हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला
सालिम सलीम
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
सालिक लखनवी
बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ
सालिक लखनवी
यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है
सलीम सिद्दीक़ी
शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को
सलीम सिद्दीक़ी
मंज़र-ए-ख़ेमा-ए-शब देखने वाला होगा
सलीम सिद्दीक़ी
मेरे एहसास की रग रग में समाने वाले
सलीम शाहिद
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