समय Poetry (page 23)

हाथ न आई दुनिया भी और इश्क़ में भी गुमनाम रहे

शबनम शकील

हम-नशीनो कुछ नहीं रक्खा यहाँ पर कुछ नहीं

शबनम शकील

गए बरस की यही बात यादगार रही

शबनम शकील

दर आया अंधेरा आँखों में और सब मंज़र धुँदलाए हैं

शबनम शकील

बदल चुकी है हर इक याद अपनी सूरत भी

शबनम शकील

अब मुझ को क्या ख़बर वो यहाँ है भी या नहीं

शबनम शकील

पी रहा है ज़िंदगी की धूप कितने प्यार से

शबनम नक़वी

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल

शब्बीर नाज़िश

मैं रतजगों का सफ़ीर ठहरा था कितनी रातें गुज़ार आया

शब्बीर नकिद

माँगा था हम ने दिन वो सियह रात दे गया

शबाब ललित

हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है

शबाब ललित

आ गया है वक़्त अब भुगतोगे ख़ामियाज़े बहुत

शबाब ललित

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

शानुल हक़ हक़्क़ी

निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के

शानुल हक़ हक़्क़ी

सितम-गर को मैं चारा-गर कह रहा हूँ

शाद आरफ़ी

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

शाद आरफ़ी

जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ

शाद आरफ़ी

हुदूद-ए-अक्ल-ओ-शर्ब का सवाल ही नहीं रहा

शाद आरफ़ी

अजीब शाम थी जब लौट कर मैं घर आया

सीमान नवेद

आँगन से ही ख़ुशी के वो लम्हे पलट गए

सीमाब सुल्तानपुरी

मैं तोड़ूँ अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा ये हो नहीं सकता

सीमाब बटालवी

मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर

सीमाब अकबराबादी

जब दिल पे छा रही हों घटाएँ मलाल की

सीमाब अकबराबादी

तक़दीर में इज़ाफ़ा-ए-सोज़-ए-वफ़ा हुआ

सीमाब अकबराबादी

चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है

सीमाब अकबराबादी

ब-क़ैद-ए-वक़्त ये मुज़्दा सुना रहा है कोई

सीमाब अकबराबादी

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