समय Poetry (page 22)

गुज़रे नहीं और गुज़र गए हम

शाहीन अब्बास

ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया

शाहीन अब्बास

बनते बनते अपने पेच-ओ-ख़म बने

शाहीन अब्बास

अब ऐसे चाक पर कूज़ा-गरी होती नहीं थी

शाहीन अब्बास

पराए शहर में ख़ुशबू तलाश लेते हैं

शाहबाज़ रिज़्वी

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

उफ़क़ पे

शहाब सर्मदी

जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई

शहाब सफ़दर

सूरज का शहर

शहाब जाफ़री

मेरी शाइ'री

शहाब अख़्तर

मैं ने बिठला के जो पास उस को खिलाया बीड़ा

शाह नसीर

जो रक़ीबों ने कहा तू वही बद-ज़न समझा

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

मुज़्तरिब हैं सभी तक़दीर बदलने के लिए

सगुफ़ता यासमीन

ऐन मुमकिन है किसी रोज़ क़यामत कर दें

शगुफ़्ता अल्ताफ़

करते हैं अगर मुझ से वो प्यार तो आ जाएँ

शफ़ीक़ ख़लिश

इक कार-ए-गराँ है खेल नहीं

शफ़ीक़ देहलवी

दिल टूट चुका तार-ए-नज़र टूट रहा है

शफ़ीक़ देहलवी

ना-फ़हम कहूँ मैं उसे ऐसा भी नहीं है

शायर फतहपुरी

गुल याद न अमवाज-ए-नसीम-ए-सहरी याद

शायर फतहपुरी

आदतन मायूस अब तो शाम है

शादाब उल्फ़त

जवानी से ज़ियादा वक़्त-ए-पीरी जोश होता है

शाद लखनवी

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का

शाद अज़ीमाबादी

लुत्फ़ क्या है बे-ख़ुदी का जब मज़ा जाता रहा

शाद अज़ीमाबादी

किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना

शाद अज़ीमाबादी

काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का

शाद अज़ीमाबादी

फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था

शाद अज़ीमाबादी

कितने अंजान जज़ीरों में मुझे ले के चला

शबनम शकील

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