समय Poetry (page 21)

इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे

शाहिद मीर

ऐसे भी कुछ ग़म होते हैं

शाहिद मीर

रग रग में मेरी फैल गया है ये कैसा ज़हर

शाहिद माहुली

सह-पहर ही से कोई शक्ल बनाती है ये शाम

शाहिद लतीफ़

इक अज़ाब होता है रोज़ जी का खोना भी

शाहिद लतीफ़

आज भी जिस की है उम्मीद वो कल आए हुए

शाहिद लतीफ़

सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल

शाहिद कमाल

कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ

शाहिद कमाल

जो देखता है मुझे आईने के अंदर से

शाहिद कलीम

जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है

शाहिद कलीम

कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के

शाहिद कबीर

शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले

शाहिद इश्क़ी

नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना

शाहिद इश्क़ी

लज़्ज़त-ए-संग न पूछो लोगो उम्र अगर हाथ आए फिर

शाहिद इश्क़ी

लाए तो नक़्द-ए-जाँ सर-ए-बाज़ार क्या कहें

शाहिद इश्क़ी

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

हर मर्ग-ए-आरज़ू का निशाँ देर तक रहा

शाहिद इश्क़ी

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

शाहिद फ़रीद

ए'तिराफ़

शाहिद अख़्तर

वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया

शाहिद अहमद शोएब

ये हम कौन हैं

शाहीन मुफ़्ती

दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

दुनिया तो ये कहती है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

ज़िंदगी है मुख़्तसर आहिस्ता चल

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

ऊपर जो परिंद गा रहा है

शाहीन अब्बास

पहले तो मिट्टी का और पानी का अंदाज़ा हुआ

शाहीन अब्बास

मैं हुआ तेरा माजरा तू मिरा माजरा हुआ

शाहीन अब्बास

कुछ भी न जब दिखाई दे तब देखता हूँ मैं

शाहीन अब्बास

कैसा कैसा दर पस-ए-दीवार करना पड़ गया

शाहीन अब्बास

इब्तिदा सा कुछ इंतिहा सा कुछ

शाहीन अब्बास

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