समय Poetry (page 20)

ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें

शहरयार

वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है

शहरयार

तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें

शहरयार

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का

शहरयार

सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का

शहरयार

किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है

शहरयार

कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें

शहरयार

कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का

शहरयार

जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था

शहरयार

जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा

शहरयार

हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के

शहरयार

हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए

शहरयार

हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था

शहरयार

हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है

शहरयार

दिल में रखता है न पलकों पे बिठाता है मुझे

शहरयार

दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही

शहरयार

आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए

शहरयार

कार-ए-जहाँ दराज़ है

शहराम सर्मदी

कल शाम

शहराम सर्मदी

समुंदर तिश्नगी वहशत रसाई चश्मा-ए-लब तक

शहराम सर्मदी

हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं

शहराम सर्मदी

हमारे ज़ेहन में ये बात भी नहीं आई

शहराम सर्मदी

बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें

शहराम सर्मदी

साहिल पे ये टूटे हुए तख़्ते जो पड़े हैं

शहूद आलम आफ़ाक़ी

आदाब ज़िंदगी से बहुत दूर हो गया

शहूद आलम आफ़ाक़ी

नास्तल्जिया

शहनाज़ नबी

हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

तेरी मर्ज़ी के ख़द-ओ-ख़ाल में ढलता हुआ मैं

शाहिद ज़की

बस रूह सच है बाक़ी कहानी फ़रेब है

शाहिद ज़की

हर इरादा मुज़्महिल हर फ़ैसला कमज़ोर था

शाहिद मीर

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