समय Poetry (page 19)

फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लहू के छींटे हैं

शकेब जलाली

रात के पिछले पहर

शकेब जलाली

इंदिमाल

शकेब जलाली

सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ

शकेब जलाली

कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई

शकेब जलाली

लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर

शकेब अयाज़

हवस-ए-वक़्त का अंदाज़ा लगाया जाए

शकेब अयाज़

उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

सनम के देख कर लब और दहन सुर्ख़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

शैख़ मीर बख़्श मसरूर

ज़िंदगी को हम वफ़ा तक वो जफ़ा तक ले गए

शहज़ाद क़मर

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल लफ़्ज़-गरी

शहज़ाद क़ैस

रात के वक़्त कोई गीत सुनाती है हवा

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

सोता जागता साया

शहज़ाद अहमद

दिल-आराम

शहज़ाद अहमद

दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था

शहज़ाद अहमद

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो

शहज़ाद अहमद

दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा

शहज़ाद अहमद

ज़बाँ मिली भी तो किस वक़्त बे-ज़बानों को

शहरयार

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का

शहरयार

कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें

शहरयार

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है

शहरयार

गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज

शहरयार

चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई

शहरयार

बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ

शहरयार

वो मोड़

शहरयार

गुम-शुदा

शहरयार

आरज़ू

शहरयार

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