समय Poetry (page 17)

शीशा-ए-साअत का ग़ुबार

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

आख़िरी तमाशाई

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

मौज-ए-दरिया को पिएँ क्या ग़म-ए-ख़म्याज़ा करें

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

कनार-ए-बहर है देखूँगा मौज-ए-आब में साँप

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

इधर से देखें तो अपना मकान लगता है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब

शम्स तबरेज़ी

ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग

शम्स रम्ज़ी

ग़म दिए हैं तो मसर्रत के गुहर भी देना

शम्स रम्ज़ी

मिली जो दिल को ख़ुशी तो ख़ुशी से घबराए

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

मिरे ए'तिमाद को ग़म मिला मिरी जब किसी पे नज़र गई

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

बिछड़ते टूटते रिश्तों को हम ने देखा था

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

तमाम शहर ब-यक-वक़्त जल गया कैसे

शमीम तारिक़

हिचकियाँ लेता हुआ दुनिया से दीवाना चला

शमीम तारिक़

दीवार की सूरत था कभी दर की तरह था

शमीम रविश

आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है

शमीम रविश

शहर में अम्न-ओ-अमाँ हो ये ज़रूरी है मगर

शमीम क़ासमी

वो जुनूँ के अहद की चाँदनी ये गहन गहन की उदासियाँ

शमीम करहानी

जश्न-ए-हयात हो चुका जश्न-ए-ममात और है

शमीम करहानी

हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो

शमीम करहानी

ग़म दो आलम का जो मिलता है तो ग़म होता है

शमीम करहानी

दर्द-शनास दिल नहीं जल्वा-तलब नज़र नहीं

शमीम करहानी

चमन चमन जो ये सुब्ह-ए-बहार की ज़ौ है

शमीम करहानी

बचाओ दामन-ए-दिल ऐसे हम-नशीनों से

शमीम करहानी

दुनिया है कि गोशा-ए-जहन्नम

शमीम जयपुरी

जब सुब्ह का मंज़र होता है या चाँदनी-रातें होती हैं

शमीम जयपुरी

फ़ुर्क़त की भयानक रातों को इस तरह गुज़ारा करता हूँ

शमीम जयपुरी

बंद कर ले खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख

शमीम हनफ़ी

बंद कर के खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख

शमीम हनफ़ी

अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है

शमीम हनफ़ी

कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है

शमीम अब्बास

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