समय Poetry (page 15)

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है

शेवन बिजनौरी

जल्वा बे-माया सा था चश्म-ओ-नज़र से पहले

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

बिजलियाँ पी के जो उड़ जाते हैं

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

आसमानों से उतर कर मिरी धरती पे बिराज

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोला

ज़ौक़

लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका कर

ज़ौक़

हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग

ज़ौक़

ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ

ज़ौक़

नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा

ज़ौक़

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए

ज़ौक़

कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे

ज़ौक़

हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं

ज़ौक़

चश्म-ए-क़ातिल हमें क्यूँकर न भला याद रहे

ज़ौक़

बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं

ज़ौक़

ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ

ज़ौक़

ये काएनात तिरा मोजज़ा लगे है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

फिर से वही हालात हैं इम्काँ भी वही है

शहपर रसूल

ख़ुद को ख़ुद पर ही जो इफ़्शा कभी करना पड़ जाए

शहपर रसूल

हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे

शहपर रसूल

मैं इंतिज़ार करूँगी

शीरीं अहमद

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे

शीन काफ़ निज़ाम

छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सौत-ओ-सदा ले जाएगा

शीन काफ़ निज़ाम

अजनबी

शाज़ तमकनत

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

शाज़ तमकनत

ज़माना याद रक्खेगा तुम्हें ये काम कर जाना

शायान क़ुरैशी

वक़्त आख़िर ले गया वो शोख़ियाँ वो बाँकपन

शायान क़ुरैशी

हालात के कोहना दर-ओ-दीवार से निकलें

शायान क़ुरैशी

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