समय Poetry (page 14)

तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

सिराज औरंगाबादी

पीव के आने का वक़्त आया है

सिराज औरंगाबादी

पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो

सिराज औरंगाबादी

हमारे पास जानाँ आन पहुँचा

सिराज औरंगाबादी

फ़िदा कर जान अगर जानी यही है

सिराज औरंगाबादी

अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते

सिराज औरंगाबादी

वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

सिराज अजमली

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

सिदरा सहर इमरान

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

सिद्दीक़ मुजीबी

न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़

सिद्दीक़ मुजीबी

शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे

सिद्दीक़ शाहिद

उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है

शुजा ख़ावर

उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है

शुजा ख़ावर

निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई

शुजा ख़ावर

दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत

शुजा ख़ावर

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

शोज़ेब काशिर

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

हैबत-ए-हुस्न से अल्फ़ाज़ की हैरानी तक

शोएब निज़ाम

अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ

शोएब निज़ाम

दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है

शोएब बिन अज़ीज़

हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में

शिवकुमार बिलग्रामी

इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

वो रू-ब-रू हों तो ये कैफ़-ए-इज़्तिराब न हो

शिव दयाल सहाब

जिस तरफ़ हाल-ए-जुनूँ में तेरे दीवाने गए

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

तअल्लुक़ात चटख़्ते हैं टूट जाते हैं

शिफ़ा कजगावन्वी

पूछते क्या हो जो हाल-ए-शब-ए-तन्हाई था

शिबली नोमानी

वो रक़्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया

शेवन बिजनौरी

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