समय Poetry (page 13)

दस्त-बरदार हुआ मैं भी तलबगारी से

सुहैल अख़्तर

हर सुब्ह अपने घर में उसी वक़्त जागना

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या

सूफ़िया अनजुम ताज

निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया

सुदर्शन फ़ाकिर

इन्द्र-धनुष बन जाएँ

सुबोध लाल साक़ी

और किस शय से दाग़-ए-दिल धोएँ

सुबहान असद

रहबर-ए-जादा-ए-मंज़िल पे हँसी आती है

सोज़ नजीबाबादी

इंसाँ हवस के रोग का मारा है इन दिनों

सोज़ नजीबाबादी

इक रौशनी का ज़हर था जो आँख भर गया

सोहन राही

मेरी रुस्वाई का यूँ जश्न मनाया तुम ने

सिया सचदेव

है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो

सिया सचदेव

अब कोई सिलसिला नहीं बाक़ी

सिया सचदेव

शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और

सिराजुद्दीन ज़फ़र

फिर भी पेशानी-ए-तूफ़ाँ पे शिकन बाक़ी है

सिराज लखनवी

ख़ुशा वो दौर कि जब मरकज़-ए-निगाह थे हम

सिराज लखनवी

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

सिराज लखनवी

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

मिटा सा हर्फ़ हूँ बिगड़ी हुई सी बात हूँ मैं

सिराज लखनवी

मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है

सिराज लखनवी

लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने

सिराज लखनवी

ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

सिराज लखनवी

जलती रहना शम-ए-हयात

सिराज लखनवी

गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ

सिराज लखनवी

अजब सूरत से दिल घबरा रहा है

सिराज लखनवी

फ़िदा कर जान अगर जानी यही है

सिराज औरंगाबादी

अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए

सिराज औरंगाबादी

आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर

सिराज औरंगाबादी

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