समय Poetry (page 12)

छुट्टी का दिन है चाहिए जैसे गुज़ारिए

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है

सय्यद अनवार अहमद

पहले से देखना कहीं बेहतर बनाएँगे

सय्यद अमीनुल हसन मोहानी बिस्मिल

वजूद को जिगर-ए-मो'तबर बनाते हैं

सय्यद अमीन अशरफ़

दिल शहर-ए-तहय्युर है कि वो मम्लिकत-आरा

सय्यद अमीन अशरफ़

वो दश्त-ए-तीरगी है कि कोई सदा न दे

सय्यद अहमद शमीम

उतर के धूप जब आएगी शब के ज़ीने से

सय्यद अहमद शमीम

था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ

सय्यद अहमद शमीम

सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे

सय्यद अाग़ा अली महर

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल

सय्यद आबिद अली आबिद

ये धूप गिरी है जो मिरे लॉन में आ कर

स्वप्निल तिवारी

नहीं रहेगा हमेशा ग़ुबार मेरे लिए

सुरेन्द्र शजर

किसी के ख़्वाब का साया था काफ़ी वक़्त हुआ

सुनील कुमार जश्न

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

सुलतान रशक

ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं

सुल्तान अख़्तर

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ

सुल्तान अख़्तर

पस-ए-ग़ुबार-ए-तलब ख़ौफ़-ए-जुस्तुजू है बहुत

सुल्तान अख़्तर

मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है

सुल्तान अख़्तर

कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ

सुल्तान अख़्तर

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

छीन ले क़ुव्वत बीनाई ख़ुदाया मुझ से

सुल्तान अख़्तर

न ढलती शाम न ठंडी सहर में रक्खा है

सुलेमान ख़ुमार

कोई दुश्मन कोई हमदम भी नहीं साथ अपने

सुलैमान अरीब

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

सुलैमान अहमद मानी

अपने ही आप में असीर हूँ मैं

सुलैमान अहमद मानी

तुम्हें रो कर बताना चाहते हैं

सुहैल सानी

किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है

सुहैल सानी

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

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