तीर Poetry (page 11)
मौलाना
हबीब जालिब
बगिया लहूलुहान
हबीब जालिब
जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है
हबीब जालिब
वो यूँ शक्ल-ए-तर्ज़-ए-बयाँ खींचते हैं
हबीब मूसवी
शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
हबीब मूसवी
हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है
हबीब मूसवी
बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की
हबीब मूसवी
उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
गुलज़ार बुख़ारी
मोहब्बत के सिवा हर्फ़-ओ-बयाँ से कुछ नहीं होता
गुलज़ार बुख़ारी
आँधी में बिसात उलट गई है
गुलज़ार बुख़ारी
तआक़ुब
गुलज़ार
डाइरी
गुलज़ार
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
गुलज़ार
उठो गले से लिपट जाओ फिर निखर लेना
गुलशनुद्दौला बहार
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा
गोपालदास नीरज
कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है
ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़
वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
ग़ुलाम मौला क़लक़
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
ग़ुलाम भीक नैरंग
पत्थर
ग़ज़नफ़र
अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा
ग़ज़नफ़र
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में
ग़ालिब
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद कि हम
ग़ालिब
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