अलगाव Poetry (page 15)
नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं
रविश सिद्दीक़ी
रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई
रविश सिद्दीक़ी
नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं
रविश सिद्दीक़ी
दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत
रौनक़ नईम
रीत तन्हाई फ़ासला सहरा
रउफ़ ख़लिश
आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है
रऊफ़ ख़ैर
रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया
राशिद तराज़
ख़ेमा-ज़न कौन है आख़िर ये कनार-ए-दिल पर
राशिद तराज़
अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है
राशिद तराज़
दर जो खोला है कभी उस से शनासाई का
राशिद नूर
एक तस्वीर जो कमरे में लगाई हुई है
राशिद अमीन
वक़्त वक़्त की बात है
राशिद आज़र
कम से कम अपना भरम तो नहीं खोया होता
राशिद आज़र
इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी
राशिदा माहीन मलिक
है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो
रशीद क़ैसरानी
'मीर'-जी से अगर इरादत है
रसा चुग़ताई
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
राना आमिर लियाक़त
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
राना आमिर लियाक़त
ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है
रम्ज़ अज़ीमाबादी
रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया
राम रियाज़
इस डर से इशारा न किया होंट न खोले
राम रियाज़
क्या ग़ज़ब है कि मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं
राम कृष्ण मुज़्तर
तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का
रजब अली बेग सुरूर
ढल गई हस्ती-ए-दिल यूँ तिरी रानाई में
रईस अमरोहवी
साथ उल्फ़त के मिले थोड़ी सी रुस्वाई भी
राहुल झा
रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी
राहुल झा
शाम-ए-ग़म बीमार के दिल पर वो बन आई कि बस
राही शहाबी
तन्हाई
राही मासूम रज़ा
दर्द तन्हाई का
राही मासूम रज़ा
चाँद और चकोर
राही मासूम रज़ा
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