तमाशा Poetry (page 6)
बिछड़ गया था कोई ख़्वाब-ए-दिल-नशीं मुझ से
शाहिद ज़की
रात ऐसी कि कभी जिस का सवेरा न हुआ
शाहिद माहुली
कुछ दर्द बढ़ा है तो मुदावा भी हुआ है
शाहिद माहुली
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
शाहिद कबीर
ख़ुद में उतरें तो पलट कर वापस आ सकते नहीं
शाहीन अब्बास
इब्तिदा सा कुछ इंतिहा सा कुछ
शाहीन अब्बास
मुझ को शाम-ए-हिज्र की ये जल्वा-आराई बहुत
शहाब अशरफ़
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
शाह नसीर
दिन रात यहाँ पुतलियों का नाच रहे है
शाह नसीर
ज़ुल्फ़ छुटती तिरे रुख़ पर तो दिल अपना फिरता
शाह नसीर
तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या
शाह नसीर
सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा
शाह नसीर
लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
शाह नसीर
हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का
शाह नसीर
इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में
शाह नसीर
मेहमाँ है कोई दम का ज़माना शबाब का
शाग़िल क़ादरी
हम ने तो यही मा'रका मारा है सफ़र में
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
लुंज वो पा-ए-तलब हूँ कहीं जा ही न सकूँ
शाद लखनवी
बद-गुमानी जो हुई शम्अ' से परवाने को
शाद लखनवी
न दिल अपना न ग़म अपना न कोई ग़म-गुसार अपना
शाद अज़ीमाबादी
ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ
शानुल हक़ हक़्क़ी
तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे
सेहर इश्क़ाबादी
तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे
सेहर इश्क़ाबादी
आ अपने दिल में मेरी तमन्ना लिए हुए
सीमाब अकबराबादी
बिंत-ए-हव्वा
सरवत ज़ेहरा
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
सरवर आलम राज़
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
सरवर आलम राज़
ये जो तालाब है दरिया था कभी
सरफ़राज़ ज़ाहिद
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
सरफ़राज़ ख़ालिद
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
सरफ़राज़ ख़ालिद
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