तमन्ना Poetry (page 24)
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
ग़ालिब
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
ग़ालिब
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
ग़ालिब
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
ग़ालिब
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा
ग़ालिब
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
ग़ालिब
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
ग़ालिब
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
ग़ालिब
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
ग़ालिब
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
ग़ालिब
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
ग़ालिब
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ग़ालिब
दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया
ग़ालिब
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
ग़ालिब
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
ग़ालिब
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
ग़ालिब
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ग़ालिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ग़ालिब
नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे
फ़ुज़ैल जाफ़री
उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग
फ़ितरत अंसारी
हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन
फ़ितरत अंसारी
दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो
फ़ितरत अंसारी
अब नहीं कोई ठिकाना अपना
फ़ीरोज़ा ख़ुसरो
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
फ़िराक़ गोरखपुरी
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
फ़िराक़ गोरखपुरी
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
फ़ाज़िल जमीली
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