संग Poetry (page 26)
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
अल्लामा इक़बाल
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
अल्लामा इक़बाल
सफ़र है ज़ेहन का तो कोई रहनुमा ले जा
अलीमुल्लाह हाली
रक़ीब-ए-नफ़्स का मुख मोड़ता रह
अलीमुल्लाह
ख़यालात रंगीं नहीं बोलते उस को ज्यूँ बास फूलों के रंगों में रहिए
अलीमुल्लाह
अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
अली ज़रयून
दिल ये कहता है कि इक आलम-ए-मुज़्तर देखूँ
अली ज़हीर लखनवी
क़त्ल-ए-आफ़्ताब
अली सरदार जाफ़री
पैराहन-ए-शरर
अली सरदार जाफ़री
गुफ़्तुगू (हिन्द पाक दोस्ती के नाम)
अली सरदार जाफ़री
उलझे काँटों से कि खेले गुल-ए-तर से पहले
अली सरदार जाफ़री
नग़्मा-ए-ज़ंजीर है और शहर-ए-याराँ इन दिनों
अली सरदार जाफ़री
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
अली सरदार जाफ़री
शहर-ए-दिल कुंज-ए-बयाबान नहीं था पहले
अली मुज़म्मिल
इक तुर्फ़ा तमाशा सर-ए-बाज़ार बनेगा
अली मुतहर अशअर
उसी के लिए
अली मोहम्मद फ़र्शी
होली
अली जव्वाद ज़ैदी
तुम किसी संग पे अब सर को टिका कर सो जाओ
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री
बर-सर-ए-बाद हुआ अपना ठिकाना सर-ए-राह
अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री
हिज्र बना आज़ार सफ़र कैसे कटता
अली अकबर मंसूर
सारे मौसम बदल गए शायद
अलीना इतरत
गर्दिश-ए-मय का इस पर न होगा असर मस्त आँखों का जादू जिसे याद है
अलीम उस्मानी
हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई
अलीम अफ़सर
चले थे भर के रेत जब सफ़र की जिस्म-ओ-जाँ में हम
अलीम अफ़सर
उठते हुए तूफ़ान का मंज़र नहीं देखा
आलमताब तिश्ना
मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था
आलमताब तिश्ना
अहद-ए-कम-कोशी में ये भी हौसला मैं ने किया
आलमताब तिश्ना
अब भी ज़र्रों पे सितारों का गुमाँ है कि नहीं
आलमताब तिश्ना
हब्स-ए-दरूँ पे जिस्म-ए-गिराँ-बार संग था
अकरम नक़्क़ाश
फ़ासला
अख़्तर-उल-ईमान
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