संग Poetry (page 24)
दिल है कि हमें फिर से उधर ले के चला है
अासिफ़ जमाल
इस जौर ओ जफ़ा से तिरे ज़िन्हार न टूटे
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
सर्द-मेहरी से तिरी दिल जो तपाँ रखते हैं
अश्क रामपुरी
ये कश्ती-ए-हयात ये तूफ़ान-ए-हादसात
अश्क अमृतसरी
उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी
अशफ़ाक़ अंजुम
दैर-ओ-हरम भी आए कई इस सफ़र के बीच
अाशा प्रभात
इक उम्र मह-ओ-साल की ठोकर में रहा हूँ
असग़र गोरखपुरी
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
असर सहबाई
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
असर लखनवी
ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा
असद जाफ़री
बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे
असअ'द बदायुनी
ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है
आरज़ू लखनवी
शौक़-ए-आवारा दश्त-ओ-दर से है
अर्शी भोपाली
कुछ दर्जा और गर्मी-ए-बाज़ार हो बुलंद
अरशद जमाल हश्मी
ख़्वाब क्या है कि टूटता ही नहीं
अरशद जमाल हश्मी
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
अरशद अली ख़ान क़लक़
लकीर-ए-संग को अन्क़ा-मिसाल हम ने किया
अरशद अब्दुल हमीद
इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ
अर्श सिद्दीक़ी
आँखों में कहीं उस के भी तूफ़ाँ तो नहीं था
अर्श सिद्दीक़ी
हिना-रंग हाथों में
अरमान नज्मी
दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया
आरिफ़ अंसारी
हवस का रंग चढ़ा उस पे और उतर भी गया
अक़ील शादाब
बराए-नाम सही कोई मेहरबान तो है
अक़ील शादाब
इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं
अनवर शऊर
रंगीं बना के दामन-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर को मैं
अनवर सहारनपुरी
दुश्मन तो मेरे तन से लहू चूसता रहा
अनवर सदीद
जब ज़मीं के मुक़द्दर सँवर जाएँगे
अनवर मीनाई
इशारतों की वो शर्हें वो तज्ज़िया भी गया
अनवर मसूद
बस अब तर्क-ए-तअल्लुक़ के बहुत पहलू निकलते हैं
अनवर मसूद
दर्द उरूज पर आ जाए तो
अनवार फ़ितरत
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