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Collection: संग Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 17 - Darsaal

संग Poetry (page 17)

दिल पर लगा रही है वो नीची निगाह चोट

हफ़ीज़ जौनपुरी

बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था

हफ़ीज़ जौनपुरी

फिर लुत्फ़-ए-ख़लिश देने लगी याद किसी की

हफ़ीज़ जालंधरी

ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा

हफ़ीज़ जालंधरी

इश्क़ ने हुस्न की बे-दाद पे रोना चाहा

हफ़ीज़ जालंधरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

तुम्हें भी मालूम हो हक़ीक़त कुछ अपनी रंगीं-अदाइयों की

हादी मछलीशहरी

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने

हबीब जालिब

किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर

हबीब मूसवी

बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की

हबीब मूसवी

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला

गुलज़ार बुख़ारी

तिरी उमीदों का साथ देगी इनायत-ए-बर्ग-ओ-बार कब तक

गुलज़ार बुख़ारी

हम शाद हों क्या जब तक आज़ार सलामत है

गुलज़ार बुख़ारी

ज़िक्र आए तो मिरे लब से दुआएँ निकलें

गुलज़ार

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तू अंग अंग में ख़ुश्बू सी बन गया होगा

गुलाम जीलानी असग़र

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अब शिकवा-ए-संग-ओ-ख़िश्त कैसा

गोपाल मित्तल

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

मसरफ़ के बग़ैर जल रहा हूँ

गोपाल मित्तल

फ़क़त इक शग़्ल बेकारी है अब बादा-कशी अपनी

गोपाल मित्तल

दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा

गोपाल मित्तल

मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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