संग Poetry (page 11)
इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा
सलीम अहमद
हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी
सलीम अहमद
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
सख़ी लख़नवी
हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है
सज्जाद सय्यद
फेरी वाला
सज्जाद बाक़र रिज़वी
सर से जुनून-ए-इश्क़ का सौदा निकालिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे
सज्जाद बाक़र रिज़वी
दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं
सज्जाद बाक़र रिज़वी
दौर उफ़्तादगी
साजिदा ज़ैदी
शिकस्ता-दिल थे तिरा ए'तिबार क्या करते
साजिद अमजद
साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए
सैफ़ ज़ुल्फ़ी
इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने
सैफ़ ज़ुल्फ़ी
अहल-ए-दिल और भी हैं
साहिर लुधियानवी
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें
साहिर लुधियानवी
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
साहिर लुधियानवी
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
साहिर लुधियानवी
शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें
साहिर होशियारपुरी
बुत-परस्ती के सनम-ख़ाने का आसार न तोड़
साहिर देहल्वी
एक मैं हूँ एक तू है बा-ख़बर कोई नहीं
सहबा वहीद
एक मैं हूँ एक तू है बा-ख़बर कोई नहीं
सहबा वहीद
शायद वो संग-दिल हो कभी माइल-ए-करम
सहबा अख़्तर
सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा
सहबा अख़्तर
दोहराऊँ क्या फ़साना-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल को
सहबा अख़्तर
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
सहबा अख़्तर
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
सहबा अख़्तर
अँधेरे से ज़ियादा रौशनी तकलीफ़ देती है
सहर महमूद
सदा अपनी रविश अहल-ए-ज़माना याद रखते हैं
सहर अंसारी
न किसी से करम की उम्मीद रखें न किसी के सितम का ख़याल करें
सहर अंसारी
हम अहल-ए-ज़र्फ़ कि ग़म-ख़ाना-ए-हुनर में रहे
सहर अंसारी
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